अपराजिता की मधुबनी कला

यही मेरी शरणस्थली है....

कला ही मेरी शरणस्थली है, अपने सब बिखरे टुकड़े समेट, मैं यहीं आकर जोड़ पाती हूँ। 

इधर Sitaram Artist सर जब मिथिला पेंटिंग की वर्कशॉप में इस कला की बारीकियाँ समझा-सिखा रहे तो मैं चुपचाप सब देख-समझ, सीख-संजो रही थी।हालाँकि कुछ-कुछ पहले से भी जानती हूँ पर सीखते हुए लगता रहा कितना कुछ नहीं जानती थी। 

उन्होंने मधुबनी लोक कला का हर वो पक्ष समझाया जो सांस्कृतिक समझ के बिना सम्भव नहीं। बहुत सारे पैटर्न बनाए और अपनी कक्षा में हाज़िरी देने वाले साथियों को इन सभी पैटर्न पर अपनी समझ और क्षमता के अनुसार प्रयोग और अभ्यास करने की सलाह दी।

मुझे सबसे अधिक वह पैटर्न पसंद आया जिसमें पिता का हाथ अपनी बेटी के सर पर रखा था,अपने पिता को याद कर मैंने भी यह पैटर्न बनाया ताकि वो जहाँ भी हों उन तक मेरा मन का कहा पहुँचे, ताकि उन्हें कह सकूँ, आप हर घड़ी याद आ रहे हैं पापा।कोई पल नहीं टलता.....

हाँ, तो कल जब अनु जी ने अपना होमवर्क शेयर किया, मेरा भी मन हुआ कि मैं वह शेयर करूँ जो सीखा, प्रयोग किया।




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