अलबेली की दुनियाँ
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हक़ की लड़ाई

 हक़ की लड़ाई में हर क़दम साथ....

एक शाम चुराई थी, बस संग बिताने को

उस शाम के क़तरों को, नाज़ुक से सम्भाला है

ये प्यार का मौसम भी इकदम अपने वाला है ....



यही सोच के जी बहला लें और क्या... 

अलबेली तो तय किए बैठी, आप बोलो क्या करोगे ?



किताबों ने जिन्हें जोड़ा उन सबके नाम .....



खुली किताबें, उड़ा-उड़ा मन, 

ढाई आखर साथ रहे.....



सबसे ख़तरनाक है 

ख़बरों को हिंदू मुसलमान बना दिया जाना ...



 बस जो कुछ शब्दों में कहा जाए वो लकीरों से कह कर देखती हूँ ...... 

आप हाल पूछते मैं यही कहती। शायद मेरी शक्ल और शब्दों का तालमेल कम बैठता है तभी तो कोई यक़ीन ही नहीं करता जब हँस कर कह देती हूँ कि थोड़ा दर्द है ...  

फिर लगा शायद ऐसे ठीक-ठीक कह पाऊँ ...



खुले केश अशेष शोभा भर रहे

पृष्ठ ग्रीवा बाहु उर पर तर रहे !

वासना की मुक्ति, मुक्ता त्याग में तागी

(प्रिय) यामिनी जागी !

——————————निराला



 हमको मालूम है जन्नत की हकी़क़त लेकिन.….



प्यारे चार्ली

प्यार वाली बात इस दुनिया को कभी समझ ही नहीं आयी... आती भी कैसे, यहाँ लोग ताक़त के नशे में चूर जो हैं

.... हैपी बर्थडे ग्रेट मास्टर...



 भारी भरकम कामों के बीच एक बेचारा इतवार.....



यही मेरी शरणस्थली है....

कला ही मेरी शरणस्थली है, अपने सब बिखरे टुकड़े समेट, मैं यहीं आकर जोड़ पाती हूँ। 

इधर Sitaram Artist सर जब मिथिला पेंटिंग की वर्कशॉप में इस कला की बारीकियाँ समझा-सिखा रहे तो मैं चुपचाप सब देख-समझ, सीख-संजो रही थी।हालाँकि कुछ-कुछ पहले से भी जानती हूँ पर सीखते हुए लगता रहा कितना कुछ नहीं जानती थी। 

उन्होंने मधुबनी लोक कला का हर वो पक्ष समझाया जो सांस्कृतिक समझ के बिना सम्भव नहीं। बहुत सारे पैटर्न बनाए और अपनी कक्षा में हाज़िरी देने वाले साथियों को इन सभी पैटर्न पर अपनी समझ और क्षमता के अनुसार प्रयोग और अभ्यास करने की सलाह दी।

मुझे सबसे अधिक वह पैटर्न पसंद आया जिसमें पिता का हाथ अपनी बेटी के सर पर रखा था,अपने पिता को याद कर मैंने भी यह पैटर्न बनाया ताकि वो जहाँ भी हों उन तक मेरा मन का कहा पहुँचे, ताकि उन्हें कह सकूँ, आप हर घड़ी याद आ रहे हैं पापा।कोई पल नहीं टलता.....

हाँ, तो कल जब अनु जी ने अपना होमवर्क शेयर किया, मेरा भी मन हुआ कि मैं वह शेयर करूँ जो सीखा, प्रयोग किया।




 आज के ‘अंधेरे में’ एक स्त्री जब-जब लिखेगी सभ्यता, संस्कृति के उजले मुँह का ढोल पीटने वालों के मुँह पर बलात्कार लिखेगी।  

... मर गयी संस्कृति, सभ्यता मर गयी, मठाधीश बच रहे।



अब रात की दीवार को ढाना है ज़रूरी   

ये काम मगर मुझसे अकेले नहीं होगा !




रचनाएँ अगर आपके अपने भी जीवन का दस्तावेज़ हों तो इतिहास में छोटी-सी सही पर अपनी जगह बना ही लेती हैं।

मिट्टी की गणगौर बनाने की कला जब कभी ख़त्म होती दिखेगी तब कोई डिजिटल दस्तावेज़ खँगालता यहाँ,  अलबेली और उसकी दुनिया तक पहुँच ही जाएगा।

है ना जी !



 फ़ेसबुक साध्वी ....

 सरकारें तैयार रहें हमने नया मोर्चा खोल लिया है


 शिव शिव शिव ....


 हक़ की लड़ाई में हर क़दम साथ....







छोटी बहन आत्मा होती हैं जिन्हें सब पता होता है कि कहाँ किस बिंदु पर हम कैसे हैं.....

हमारी मुस्कुराहट को सम्भाले रखती है और दुःख को बाँट लिया करती हैं छोटी बहने।इसलिए चेतू में हम सबकी (हम पाँचों भाई-बहन की) आत्मा का एक-एक अंश बसता है जिसे अपनी गुलाबी बातों की पोटली में सम्भाले रहती है वो।हमें जान से भी प्यारी है हमारी सबसे छोटी बहन।

वैसे, किसी काम को करने-करवाने के पीछे लग जाए तो हमें दम ना लेने दे और अगर भाँप ले कि कोई बात परेशान करने वाली है तो उसे पास फटकने ना दे।

मेरी सबसे अच्छी दोस्त, मेरी राज़दार, मेरे साथ हर अच्छे-बुरे पर हँस-रो लेने वाली मेरी आत्मा ....... 

जन्मदिन बहुत मुबारक चेतू  (चेतना शर्मा) 





 जो छोटी बहन जैसा दोस्त ना होता...

तो कौन सुनता अलबेली के मन की इतने इत्मिनान से,
किससे कहे होते मोहब्बत के पहले अफ़साने,
किसके की होती सारी दुनिया की शिकायतें,
किसके साथ बाँटती मन पूरा-पूरा, ज़िंदगी आधी-आधी।





 तुम कितने सुंदर हो अप्रैल.....

ये किसने तुम्हें फूहड़पन से जोड़ दिया !

तुम चैत की धूप में खिले बोगेनवेलिया, सेमल के फूल से जन्मी रुई का पहला फ़ाहा, तुम लाल-लाल झूमरों से झूलते चील (बॉटल ब्रश) के फूल।

तुम मौसम की नयी करवट, तुम एक साथ पतझड़ और बहार।अलबेली के लिए तुम सबसे अलबेले।

प्यार तुम्हें अप्रैल ...


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