हरसिंगार का प्रेम


चुप रहो ज़रा सपना पूरा हो जाने दो
घर की मैना को ज़रा प्रभाती गाने दो
खामोश धरा, आकाश, दिशायें सोयीं हैं
मुझको आँचल में हरसिंगार भर लाने दो
मिटने दो आँखों के आगे का अंधियारा
पथ पर पूरा-पूरा प्रकाश हो लेने दो
...............................सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

( मन में गूँजती रही कविता, हरसिंगार का प्रेम झरता रहा )



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