आँगन बैठ कर गाए जाने वाले गीत,
देहरी पर बैठ कर लिखे जाने वाली कविता से
कितने अलग थे...
(कभी-कभी कलम किसी ख़याल से लिपटकर डूब जाती है)
Followers
POPULAR POSTS
-
पुण्य चिनिया बदाम अलबेली जब कहे ... प्रसाद ब्यूटी पार्लर जय माता दी ये कश्मीर है !!! छुट्टी
-
संघर्ष हमारा नारा है प्रेम और प्रतिरोध स्टूडेंट्स पर लाठीचार्ज..... लॉकडाउन बढ़े चलो हाँ, सब ठीक है चलते-चलते सरकार, फ़ाइल चोरी .. ब...
-
मन सेमल सेमल संग मन-मीत ज़िंदगी की किताब दुःख